वर्ष 2018 के टॉप-5 घटनाक्रम जिसने दुनिया बदल दी
Dharmvir Joshi
वर्ष 2018 समाप्ति की ओर है और 2019 आपके स्वागत में बाँहें फैलाये खड़ा है. इस वर्ष बहुत से ऐसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए हैं जिन्हें करेंट अफेयर्स की दृष्टि से याद रखना बहुत जरुरी है. इसी कड़ी में जागरण जोश डॉट कॉम आप तक पूरे वर्ष के 50 चुनिंदा घटनाक्रमों की संक्षिप्त एवं आवश्यक जानकारी उपलब्ध करा रहा है. विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी के लिए यह सभी घटनाएं अति महत्वपूर्ण हैं.
1. भारत का पहला सबसे तेज़ चलने वाला सुपर कंप्यूटर 'प्रत्यूष' लॉन्च
केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 08 जनवरी 2018 को पुणे में भारत का सबसे तेज और पहला मल्टीपेटाफ्लोप्स सुपर कम्प्यूटर देश को समर्पित किया. इस सुपर कम्प्यूटर को सूर्य के नाम पर प्रत्यूष नाम दिया गया है.
इसे भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान पुणे में लगाया गया है जिससे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से सटीक मौसम और जलवायु पूर्वानुमान में और सुधार होगा.
अन्य जानकारी:
• भारत इस श्रेणी में ब्रिटेन, जापान और अमेरिका के बाद मौसम तथा जलवायु की निगरानी जैसे कार्यों के लिए एचपीसी क्षमता वाला चौथा प्रमुख देश बन गया है.
• फिलहाल के मौजूदा आंकड़ों के अनुसार ब्रिटेन 20.4 पेटाफ्लॉप अंकों के साथ सर्वाधिक एचपीसी क्षमता वाला देश है. इसके बाद जापान की एचपीसी क्षमता 20 पेटाफ्लॉप और अमेरिका की 10.7 पेटाफ्लॉप है.
• भारत इससे पूर्व एक पेटाफ्लॉप की क्षमता के साथ आठवें स्थान पर मौजूद था. प्रत्यूष सुपर कंप्यूटर के आने के बाद भारत ने कोरिया (4.8 पेटाफ्लॉप), फ्रांस (4.4 पेटाफ्लॉप) और चीन (2.6 पेटाफ्लॉप) को भी पीछे छोड़ दिया है.
• इस सुपर कंप्यूटर की हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग (एचपीसी) क्षमता 6.8 पेटाफ्लॉप है, जो मात्र एक सेकेंड में कई अरब गणनाएं कर सकता है.
• पिछले दस वर्षों के दौरान एचपीसी की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. यह क्षमता वर्ष 2008 में 40 टेराफ्लॉप थी, जो बढ़कर वर्ष 2013-14 में एक पेटाफ्लॉप हुई और अब यह बढ़कर अपने मौजूदा स्तर तक पहुंची है.
• सुपर कंप्यूटर की 6.8 पेटाफ्लॉप एचपीसी क्षमता में से चार पेटाफ्लॉप पुणे के उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान और शेष 2.8 पेटाफ्लॉप कंप्यूटिंग क्षमता पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत नोएडा स्थित राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र में स्थापित की गई है.
पृष्ठभूमि:
कंप्यूटिंग क्षमता का लाभ अन्य संस्थानों को भी मिल सकेगा. इस तंत्र की मदद से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केन्द्र के अंतर्गत कार्यरत सुनामी चेतावनी केंद्र द्वारा की जाने वाली सुनामी से जुड़ी भविष्यवाणी में भी सुधार हो सकेगा. कंप्यूटिंग क्षमता में वृद्धि होने से मौसम, जलवायु एवं महासागरों पर केंद्रित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा दी जा रही सेवाओं में सुधार हो सकेगा.
भारतीय मौसम विभाग इस तरह की कंप्यूटिंग क्षमता की मदद से वर्ष 2005 में मुंबई की बाढ़, वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा तथा वर्ष 2015 में चेन्नई की बाढ़ जैसी जटिल मौसमी घटनाओं के बारे में सटीक पूर्वानुमान आसानी से लगा पाएगा. इसकी मदद से समुद्री तूफानों का पूर्वानुमान भी समय रहते लगाया जा सकेगा.
2. ट्रेन-18 ने सफलतापूर्वक 180 किमी/घंटा की रफ़्तार पर ट्रायल रन पूरा किया
भारतीय रेलवे की पहली बिना इंजन वाली ट्रेन-18 परीक्षण के दौरान 180 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक स्पीड से सफलतापूर्वक दौड़ी. इस प्रकार यह देश की सबसे तेज दौड़ने वाली ट्रेन बन गई है. इस ट्रेन की अधिकतम स्पीड 220 किमी प्रति घंटे तक हो सकती है.
इससे पहले भारतीय पटरियों पर टैल्गो ट्रेन 180 की स्पीड से दौड़ी थी, लेकिन वह स्पेन की ट्रेन थी. मौजूदा समय में भारत की सबसे तेज दौड़ने वाली ट्रेन गतिमान एक्सप्रेस दिल्ली से झांसी के बीच अधिकतम 160 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से सफर करती है.
परीक्षण के बारे में जानकारी
परीक्षण के बारे में जानकारी
भारत की नेक्स्ट जेनरेशन ट्रेन कही जा रही ट्रेन-18 का ट्रायल दिल्ली-मुंबई राजधानी रूट पर किया जा रहा है. यह ट्रेन पहले ट्रायल के दौरान 170 किलोमीटर प्रति घंटे के स्पीड से दौड़ी, जबकि दूसरे ट्रायल में इसने 180 किलोमीटर प्रति घंटे से दौड़ने का नया रेकॉर्ड बनाया. रेलमंत्री पीयूष गोयल ने एक विडियो शेयर करके बताया है कि इतनी स्पीड में भी ट्रेन में झटके नहीं लग रहे हैं. वीडियो में पानी के बोतलों को दिखाया गया है, जो काफी स्थिर हैं.
ट्रेन-18 की विशेषताएं
• चेन्नई के इंटिग्रल कोच फैक्ट्री ने इसे तैयार किया है और साल 2018 में बनने के कारण इसे ट्रेन-18 नाम दिया गया है.
• इस ट्रेन की पूरी बॉडी ख़ास एल्यूमिनियम की बनी है यानी यह ट्रेन वज़न में हल्की भी होगी.
• इसे तुरंत ही ब्रेक लगाकर रोकना आसान है और इसके तुरंत ही तेज़ गति भी दी जा सकती है.
• इस ट्रेन के मध्य में दो एक्जिक्यूटिव कंपार्टमेंट होंगे. प्रत्येक में 52 सीटें होंगी. वहीं सामान्य कोच में 78 सीटें होंगी.
• शताब्दी की गति 130 किलोमीटर प्रति घंटे है जबकि यह 220 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक चल सकेगी.
• ट्रेन-18 में जीपीएस आधारित यात्री सूचना प्रणाली के अलावा अलहदा तरह की लाइट, ऑटोमेटिक दरवाजे और सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे.
ट्रेन-18 की विशेषताएं
• चेन्नई के इंटिग्रल कोच फैक्ट्री ने इसे तैयार किया है और साल 2018 में बनने के कारण इसे ट्रेन-18 नाम दिया गया है.
• इस ट्रेन की पूरी बॉडी ख़ास एल्यूमिनियम की बनी है यानी यह ट्रेन वज़न में हल्की भी होगी.
• इसे तुरंत ही ब्रेक लगाकर रोकना आसान है और इसके तुरंत ही तेज़ गति भी दी जा सकती है.
• इस ट्रेन के मध्य में दो एक्जिक्यूटिव कंपार्टमेंट होंगे. प्रत्येक में 52 सीटें होंगी. वहीं सामान्य कोच में 78 सीटें होंगी.
• शताब्दी की गति 130 किलोमीटर प्रति घंटे है जबकि यह 220 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक चल सकेगी.
• ट्रेन-18 में जीपीएस आधारित यात्री सूचना प्रणाली के अलावा अलहदा तरह की लाइट, ऑटोमेटिक दरवाजे और सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे.
3. जर्मनी में विश्व की पहली हाइड्रोजन इंधन वाली ट्रेन का सफल परीक्षण किया गया
जर्मनी में 18 सितंबर 2018 को विश्व की पहली हाइड्रोजन इंधन वाली ट्रेन का सफल ट्रायल किया गया. यह ट्रेन पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है अर्थात् डीजल इंजन की भांति इससे प्रदूषण नहीं होता.
विश्व में बढ़ रही प्रदूषण की समस्या के चलते इस ट्रेन का निर्माण किया गया है. उत्तरी जर्मनी में हमबर्ग के पास एक रेलवे लाइन पर इस ट्रेन की का सफल ट्रायल हुआ. इस ट्रेन का नाम कोराडिया आई लिंट (Coradia iLint) रखा गया है.
हाइड्रोजन इंधन वाली ट्रेन की विशेषताएं
• इसको फ्रांस की कंपनी एलस्टॉम (Alstom) ने दो साल की मेहनत के बाद तैयार किया है.
• कंपनी द्वारा दावा किया गया है कि यह ट्रेन ज़ीरो एमिशन पैटर्न पर चलती है अर्थात् इससे कार्बन डाइऑक्साइड नहीं निकलती बल्कि इससे भाप उत्पन्न होती है.
• इसकी स्पीड और यात्रियों को ले जाने की क्षमता डीज़ल ट्रेन की तुलना में कम नहीं है. इसकी टॉप स्पीड 140 किलोमीटर प्रति घंटा है.
• कोराडिया आई लिंट ट्रेन सिंगल टैंक हाइड्रोजन भरे जाने पर 1,000 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है, ऐसा दावा किया गया है.
• इस ट्रेन के परीक्षण के तौर पर इसे उत्तरी जर्मनी में कक्सहेवन, ब्रेमेरहेवन, ब्रेमर्वोर्डे और बक्सटेहुड के कस्बों और शहरों के बीच एक 100 किलोमीटर की दूरी पर चलाया गया.
• इस ट्रेन की विशेषता यह भी है कि एक बार इसका टैंक फुल होने के बाद यह करीब 1000 किलोमीटर की दूरी तय करती है.
हाइड्रोजन ट्रेन की उपयोगिता
हाइड्रोजन ट्रेन को चलाने में डीजल इंजन की तुलना खर्च थोड़ा ज्यादा आता है. हाइड्रोजन ट्रेनों में फ्यूल शेल होता है, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलने के बाद बिजली उत्पन्न करती हैं. इस प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जन के रूप में सिर्फ भाप और पानी निकलता है. यही कारण है कि इसे जीरो उत्सर्जन यानि कि प्रदूषण न करने वाला इंजन बताया जाता है. इस दौरान बिजली का जो अधिक उत्पादन होता है, उसे ट्रेन में आयन लिथियम बैटरी में अतिरिक्त जमा की जाती है. इस प्रकार देखा जाए तो इसके उत्पादन में खर्च अधिक है लेकिन लम्बे समय के लिए इसके अनेक लाभ भी हैं.
इस ट्रेन से जर्मनी के कई शहरों में प्रदूषण से निपटा जा सकता है. जर्मनी के अलावा ब्रिटेन, नीदरलैंड, डेनमार्क, नॉर्वे, इटली, कनाडा जैसे देशों में भी हाईड्रोजन ट्रेन चलाने की संभावना पर काम किया जा रहा है. फ्रांस की सरकार ने पहले ही कहा कि वह देश में 2022 तक पटरी पर हाईड्रोजन ट्रेन चलते देखना चाहती है.
विश्व में बढ़ रही प्रदूषण की समस्या के चलते इस ट्रेन का निर्माण किया गया है. उत्तरी जर्मनी में हमबर्ग के पास एक रेलवे लाइन पर इस ट्रेन की का सफल ट्रायल हुआ. इस ट्रेन का नाम कोराडिया आई लिंट (Coradia iLint) रखा गया है.
हाइड्रोजन इंधन वाली ट्रेन की विशेषताएं
• इसको फ्रांस की कंपनी एलस्टॉम (Alstom) ने दो साल की मेहनत के बाद तैयार किया है.
• कंपनी द्वारा दावा किया गया है कि यह ट्रेन ज़ीरो एमिशन पैटर्न पर चलती है अर्थात् इससे कार्बन डाइऑक्साइड नहीं निकलती बल्कि इससे भाप उत्पन्न होती है.
• इसकी स्पीड और यात्रियों को ले जाने की क्षमता डीज़ल ट्रेन की तुलना में कम नहीं है. इसकी टॉप स्पीड 140 किलोमीटर प्रति घंटा है.
• कोराडिया आई लिंट ट्रेन सिंगल टैंक हाइड्रोजन भरे जाने पर 1,000 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है, ऐसा दावा किया गया है.
• इस ट्रेन के परीक्षण के तौर पर इसे उत्तरी जर्मनी में कक्सहेवन, ब्रेमेरहेवन, ब्रेमर्वोर्डे और बक्सटेहुड के कस्बों और शहरों के बीच एक 100 किलोमीटर की दूरी पर चलाया गया.
• इस ट्रेन की विशेषता यह भी है कि एक बार इसका टैंक फुल होने के बाद यह करीब 1000 किलोमीटर की दूरी तय करती है.
हाइड्रोजन ट्रेन की उपयोगिता
हाइड्रोजन ट्रेन को चलाने में डीजल इंजन की तुलना खर्च थोड़ा ज्यादा आता है. हाइड्रोजन ट्रेनों में फ्यूल शेल होता है, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलने के बाद बिजली उत्पन्न करती हैं. इस प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जन के रूप में सिर्फ भाप और पानी निकलता है. यही कारण है कि इसे जीरो उत्सर्जन यानि कि प्रदूषण न करने वाला इंजन बताया जाता है. इस दौरान बिजली का जो अधिक उत्पादन होता है, उसे ट्रेन में आयन लिथियम बैटरी में अतिरिक्त जमा की जाती है. इस प्रकार देखा जाए तो इसके उत्पादन में खर्च अधिक है लेकिन लम्बे समय के लिए इसके अनेक लाभ भी हैं.
इस ट्रेन से जर्मनी के कई शहरों में प्रदूषण से निपटा जा सकता है. जर्मनी के अलावा ब्रिटेन, नीदरलैंड, डेनमार्क, नॉर्वे, इटली, कनाडा जैसे देशों में भी हाईड्रोजन ट्रेन चलाने की संभावना पर काम किया जा रहा है. फ्रांस की सरकार ने पहले ही कहा कि वह देश में 2022 तक पटरी पर हाईड्रोजन ट्रेन चलते देखना चाहती है.
भारत द्वारा 19 जनवरी 2018 को ऑस्ट्रेलिया ग्रुप (एजी) का सदस्य बनना एक महत्वपूर्ण कामयाबी है. इस समूह की सदस्यता के मिलने पर भारत अंतरराष्ट्रीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के लिए मजबूती से दावेदारी रख सकता है.
ऑस्ट्रेलिया ग्रुप (एजी) परमाणु अप्रसार की एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि निर्यातों से रासायनिक या जैविक हथियारों का विकास नहीं हो सके. मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) और वासेनार अरेंजमेंट (डब्ल्यूए) के बाद चार प्रमुख निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में से एक एजी की सदस्यता मिलने से भारत को 48 सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में अपनी सदस्यता की दावेदारी पुख्ता बनाने में मदद मिल सकती है.
ऑस्ट्रेलिया ग्रुप (एजी) परमाणु अप्रसार की एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि निर्यातों से रासायनिक या जैविक हथियारों का विकास नहीं हो सके. मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) और वासेनार अरेंजमेंट (डब्ल्यूए) के बाद चार प्रमुख निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में से एक एजी की सदस्यता मिलने से भारत को 48 सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में अपनी सदस्यता की दावेदारी पुख्ता बनाने में मदद मिल सकती है.
ऑस्ट्रेलिया ग्रुप (एजी) में भारत
• ऑस्ट्रेलिया ग्रुप द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया कि 19 जनवरी 2018 को भारत औपचारिक रूप से ऑस्ट्रेलिया ग्रुप (एजी) का सदस्य बन गया है.
• भारत को ऑस्ट्रेलिया ग्रुप के 43वें भागीदार के तौर पर शामिल किया.
• भारत के लिए यह परस्पर लाभदायक होगा और परमाणु अप्रसार के उद्देश्य में सहायता करेगा. ऑस्ट्रेलिया ग्रुप की सदस्यता से अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा एवं अप्रसार उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी.
• गौरतलब है कि भारत 2016 में मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में शामिल हुआ जबकि वासेनार अरेंजमेंट (डब्ल्यूए) में पिछले साल शामिल हुआ था.
• ऑस्ट्रेलिया ग्रुप द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया कि 19 जनवरी 2018 को भारत औपचारिक रूप से ऑस्ट्रेलिया ग्रुप (एजी) का सदस्य बन गया है.
• भारत को ऑस्ट्रेलिया ग्रुप के 43वें भागीदार के तौर पर शामिल किया.
• भारत के लिए यह परस्पर लाभदायक होगा और परमाणु अप्रसार के उद्देश्य में सहायता करेगा. ऑस्ट्रेलिया ग्रुप की सदस्यता से अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा एवं अप्रसार उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी.
• गौरतलब है कि भारत 2016 में मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में शामिल हुआ जबकि वासेनार अरेंजमेंट (डब्ल्यूए) में पिछले साल शामिल हुआ था.
ऑस्ट्रेलिया ग्रुप (एजी) क्या है?
यह विभिन्न देशों का सहकारी और स्वैच्छिक समूह है जो उन सामग्रियों, उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के प्रसार को रोकने के लिए काम कर रहा है जो देशों या आतंकवादी संगठनों की ओर से रासायनिक और जैविक हथियारों के विकास या अधिग्रहण में योगदान दे सकता है.
इसकी स्थापना वर्ष 1985 में उस समय की गयी थी जब एक वर्ष पूर्व इराक द्वारा रासायनिक हथियारों का उपयोग किया गया. ऑस्ट्रेलिया ग्रुप का उद्देश्य सदस्य देशों को उन निर्यातों की पहचान करने में मदद करना है जिन्हे नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता है ताकि रासायनिक और जैविक हथियारों के प्रसार को रोका जा सके.
भारत के इस समूह में शामिल होने से पूर्व इसके 42 सदस्य थे जिसमें ओईसीडी के सभी सदस्य देश, यूरोपीय संघ के सभी 28 सदस्य देशों सहित यूक्रेन और अर्जेटीना भी शामिल हैं. संगठन का नाम ऑस्ट्रेलिया ग्रुप इसलिए रखा गया ऑस्ट्रलिया ने यह समूह बनाने के लिए पहल की थी.
यह विभिन्न देशों का सहकारी और स्वैच्छिक समूह है जो उन सामग्रियों, उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के प्रसार को रोकने के लिए काम कर रहा है जो देशों या आतंकवादी संगठनों की ओर से रासायनिक और जैविक हथियारों के विकास या अधिग्रहण में योगदान दे सकता है.
इसकी स्थापना वर्ष 1985 में उस समय की गयी थी जब एक वर्ष पूर्व इराक द्वारा रासायनिक हथियारों का उपयोग किया गया. ऑस्ट्रेलिया ग्रुप का उद्देश्य सदस्य देशों को उन निर्यातों की पहचान करने में मदद करना है जिन्हे नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता है ताकि रासायनिक और जैविक हथियारों के प्रसार को रोका जा सके.
भारत के इस समूह में शामिल होने से पूर्व इसके 42 सदस्य थे जिसमें ओईसीडी के सभी सदस्य देश, यूरोपीय संघ के सभी 28 सदस्य देशों सहित यूक्रेन और अर्जेटीना भी शामिल हैं. संगठन का नाम ऑस्ट्रेलिया ग्रुप इसलिए रखा गया ऑस्ट्रलिया ने यह समूह बनाने के लिए पहल की थी.
खगोल वैज्ञानिकों ने हब्बल एवं केपलर अंतरिक्ष दूरबीनों की मदद से हमारे सौरमंडल के बाहर पहले चंद्रमा (एक्जोमून) का पता लगाया है. यह धरती से 8,000 प्रकाश वर्ष दूर एक विशालकाय गैसीय ग्रह की परिक्रमा कर रहा है. ऐसा पहली बार है जब सौरमंडल के बाहर किसी चंद्रमा की खोज गई है.
‘साइंस एडवांसेस’ पत्रिका में प्रकाशित लेख के अनुसार यह एक्जोमून अपने बड़े आकार (नेप्चून के व्यास की तुलना में) के कारण अनोखा है. यह अपने आप में एक पहली घटना है.
मुख्य तथ्य:
• दरअसल हमारे सौरमंडल से बाहर स्थित ग्रह को एक्जोप्लैनेट (बहिर्ग्रह) और इसके चंद्रमा यानी उपग्रह को ‘एक्जोमून’ कहते हैं.
• वैज्ञानिकों ने इसके लिए ह्यूबल और केप्लर स्पेस टेलिस्कॉप का इस्तेमाल किया है.
• रिपोर्ट के मुताबिक, यह चांद अपने आकार की वजह से काफी विचित्र है. वैज्ञानिकों का कहना है कि आकार के मामले में इसकी तुलना वरूण ग्रह से की जा सकती है.
• अमेरिका स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि इस तरह का विशाल चंद्रमा हमारे खुद के सौरमंडल में नहीं है लेकिन ऐसे 200 प्राकृतिक उपग्रहों को सूचीबद्ध किया गया है.
• नेप्च्यून के आकार वाला यह एक्सोमून 'केप्लर-1625b' नामक तारे की परिक्रमा कर रहा है. बतौर वैज्ञानिक, अगर एक्सोमून की पुष्टि हो जाती है तो यह खोज खगोल विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि साबित होगी.
कोलंबिया विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान के सहायक प्रोफेसर डेविड किपिंग ने कहा की यह ऐसा मामला है जब हमारे सौरमंडल से बाहर ऐसे चंद्रमा का पता लगा है. उन्होंने कहा की अगर हब्बल दूरबीन के अवलोकन में बाद में भी इसकी पुष्टि हो जाती है तो इससे ग्रहीय प्रणाली के विकास के बारे में अहम जानकारी मिल सकती है और इससे विशेषज्ञ ग्रहों के इर्द-गिर्द उपग्रहों के निर्माण की संख्या से संबंधित सिद्धांतों पर फिर से गौर कर सकते हैं.
सौरमंडल का सबसे बड़ा चांद:
सौरमंडल का सबसे बड़ा चांद गेनीमेड है, जो बृहस्पति की परिक्रमा करता है. इसका व्यास करीब 5,260 किलोमीटर है. वहीं इस बाहरी चांद का व्यास करीब 49,000 किलोमीटर है. यह बाहरी चांद और उसका मूल ग्रह केपलर-1625 की परिक्रमा करते हैं. केपलर-1625 तापमान में हमारे सूर्य जैसा ही तारा है, लेकिन आकार में इससे करीब 70 प्रतिशत ज्यादा है. यह चांद अपने ग्रह से करीब 30 लाख किलोमीटर की दूरी पर परिक्रमा करता है. इसका द्रव्यमान मूल ग्रह के करीब 1.5 फीसद के बराबर है.
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